सूरज का सातवाँ घोड़ा (Hindi Edition)
थरमवीरभारती
इसके पहले कि मैं आपके सामने माणिक मुल्ला की अद्भुत निष्कर्षवादी प्रेम-कहानियों के रूप में लिखा गया यह 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' नामक उपन्यास प्रस्तुत करूँ, यह अच्छा होगा कि पहले आप यह जान लें कि माणिक मुल्ला कौन थे, वे हम लोगों को कहाँ मिले, कैसे उनकी प्रेम-कहानियाँ हम लोगों के सामने आईं, प्रेम के विषय में उनकी धारणाएँ और अनुभव क्या थे, तथा कहानी की टेकनीक के बारे में उनकी मौलिक उद्भावनाएँ क्या थीं।
मुल्ला उनका उपनाम नहीं, जाति थी। कश्मीरी थे। कई पुश्तों से उनका परिवार यहाँ बसा हुआ था, वे अपने भाई और भाभी के साथ रहते थे। भाई और भाभी का तबादला हो गया था और वे पूरे घर में अकेले रहते थे। इतनी सांस्कृतिक स्वाधीनता तथा इतनी कम्युनिज्म एक साथ उनके घर में थी कि यद्यपि हम लोग उनके घर से बहुत दूर रहते थे, लेकिन वहीं सबका अड्डा जमा करता था। हम सब उन्हें गुरुवत मानते थे और उनका भी हम सबों पर निश्छल प्रगाढ़ स्नेह था। वे नौकरी करते हैं या पढ़ते हैं, नौकरी करते हैं तो कहाँ, पढ़ते हैं तो क्या पढ़ते हैं - यह भी हम लोग कभी नहीं जान पाए। उनके कमरे में किताबों का नाम-निशान भी नहीं था। हाँ, कुछ अजब-अजब चीजें वहाँ थीं जो अमूमन दूसरे लोगों के कमरों में नहीं पाई जातीं। मसलन दीवार पर एक पुराने काले फ्रेम में एक फोटो जड़ा टँगा था : 'खाओ, बदन बनाओ!' एक ताख में एक काली बेंट का बड़ा-सा सुंदर चाकू रखा था, एक कोने में एक घोड़े की पुरानी नाल पड़ी थी और इसी तरह की कितनी ही अजीबोगरीब चीजें वहाँ थीं जिनका औचित्य हम लोग कभी नहीं समझ पाते थे। इनके साथ ही साथ हमें ज्यादा दिलचस्पी जिस बात में थी, वह यह कि जाड़ों में मूँगफलियाँ और गरमियों में खरबूजे वहाँ हमेशा मौजूद रहते थे और उसका स्वाभाविक परिणाम यह था कि हम लोग भी हमेशा वहाँ मौजूद रहते थे।
मुल्ला उनका उपनाम नहीं, जाति थी। कश्मीरी थे। कई पुश्तों से उनका परिवार यहाँ बसा हुआ था, वे अपने भाई और भाभी के साथ रहते थे। भाई और भाभी का तबादला हो गया था और वे पूरे घर में अकेले रहते थे। इतनी सांस्कृतिक स्वाधीनता तथा इतनी कम्युनिज्म एक साथ उनके घर में थी कि यद्यपि हम लोग उनके घर से बहुत दूर रहते थे, लेकिन वहीं सबका अड्डा जमा करता था। हम सब उन्हें गुरुवत मानते थे और उनका भी हम सबों पर निश्छल प्रगाढ़ स्नेह था। वे नौकरी करते हैं या पढ़ते हैं, नौकरी करते हैं तो कहाँ, पढ़ते हैं तो क्या पढ़ते हैं - यह भी हम लोग कभी नहीं जान पाए। उनके कमरे में किताबों का नाम-निशान भी नहीं था। हाँ, कुछ अजब-अजब चीजें वहाँ थीं जो अमूमन दूसरे लोगों के कमरों में नहीं पाई जातीं। मसलन दीवार पर एक पुराने काले फ्रेम में एक फोटो जड़ा टँगा था : 'खाओ, बदन बनाओ!' एक ताख में एक काली बेंट का बड़ा-सा सुंदर चाकू रखा था, एक कोने में एक घोड़े की पुरानी नाल पड़ी थी और इसी तरह की कितनी ही अजीबोगरीब चीजें वहाँ थीं जिनका औचित्य हम लोग कभी नहीं समझ पाते थे। इनके साथ ही साथ हमें ज्यादा दिलचस्पी जिस बात में थी, वह यह कि जाड़ों में मूँगफलियाँ और गरमियों में खरबूजे वहाँ हमेशा मौजूद रहते थे और उसका स्वाभाविक परिणाम यह था कि हम लोग भी हमेशा वहाँ मौजूद रहते थे।